गुस्ताखी
हैं गुस्ताखी वो नजरों की
दिल में जज़्बात जगा बैठें
बेमेल मोहब्बत हम उनसे
दिन रात ये कर बैठें
नीले गगन का कोई दोष नहीं
जब माटी की मूरत ले हम
उस चाँद की ख्वाहिश कर बैठे।
शायद आख़िरी पीढ़ी
हम शायद विशेष लोग हैं !!
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क्योंकि हम वो आखरी पीढ़ी हैं जिन्होंने –
कई कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है,
प्लेट में चाय पी है।
हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने –
बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली डंडा, छुपा छिपी, खो खो, कबड्डी कंचे.. जैसे खेल खेले ।
हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने –
कम (या बल्ब की पीली) रोशनी में होम वर्क किया है और नावेल पढ़े हैं –
हम वही पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने अपनों के लिए अपने भावनाओं को पत्रों में आदान प्रदान किये हैं ।
हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने –
कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुज़ारा है –
हम अक्सर अपने छोटे बालों में सरसों का ज्यादा तेल लगा कर स्कूल और शादियों में जाया करते थे-
हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी, किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये-
हम वो आखरी लोग हैं –
जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है।
हम वो आखरी लोग हैं जो-
मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देखकर नुक्कड़ से भाग कर घर आ जाया करते थे !
हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने –
अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर खड़िया का पेस्ट लगाकर चमकाये हैं !
हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने –
गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनाई है। जिन्होंने गुड़ की चाय पी है । काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर ही इस्तेमाल किया है।
हम निश्चित ही वो आखिर लोग हैं जिन्होंने चांदनी रातों में रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और बिनाका जैसे प्रोग्राम सुने हैं।
कभी वो भी ज़माने थे :
हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे-
उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे-
एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था-
सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे-
वो सब दौर बीत गया, चादरें अब नहीं बिछा करतीं, डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं –
वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग लगातार कम होते गए, होते जा रहे हैं –
उस दौर के लोग ज्यादा पढ़े लिखे कम ही होते थे,
उन लोगों के घर भले ही पक्के और ऊंचे नहीं होते थे, मगर क़द में वो आज के इंसानों से कहीं ज्यादा बड़े हुआ करते थे-
अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता और अकेलेपन, व निराशा, में खोते जा रहे हैं !🤔
हम ही वो लोग हैं जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है❗
Special Leave petition (विशेष अनुमति याचिका)
SLP
Special Leave petition
विशेष अनुमति याचिका
क्या होती है स्पेशल लीव पिटिशन
किसी भी कोर्ट , ट्रिब्यूनल या हाई कोर्ट के द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से विशेष अनुमति प्राप्त करने हेतु एसएलपी दायर की जाती है।
सविधान के कौन से आर्टिकल के अंतर्गत आती है एसएलपी-
एसएलपी संविधान के आर्टिकल 136 के अंतर्गत दायर की जाती है।
आर्टिकल 136 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के पास यह अधिकार है कि वह अपनी विवेकानुसार किसी भी एसएलपी को एक्सेप्ट या रिजेक्ट कर सकता है।
एसएलपी किन मामलों में दायर की जाती है
भारत के किसी भी कोर्ट या ट्रिब्यूनल के द्वारा दिए गए निर्णय ,डिक्री ,दंडादेश या आदेश के विरुद्ध एसएलपी दायर की जा सकती है।
अपवाद
सशस्त्र बलों के कोर्ट या ट्रिब्यूनल के द्वारा दिए गए आदेश या निर्णय के विरुद्ध एसएलपी दायर नहीं की जा सकती है।
एसएलपी और अपील में क्या अंतर है
1. अपील हमेशा किसी कोर्ट के अंतिम निर्णय के विरुद्ध की जाती है, जबकि एसएलपी किसी भी निर्णय के विरुद्ध की जा सकती है चाहे निर्णय अंतरिम हो या अंतिम।
2. अपील हमेशा नीचे वाले कोर्ट से उससे ऊपर वाले कोर्ट में की जाती है, आप सीधे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं कर सकते हो। जबकि एसएलपी किसी भी अदालत के निर्णय के विरुद्ध सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती है।
आख़िरी पन्ना
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JHANSI KI RANI
हमारे एक ब्लोगर दोस्त मधुसूदन जी है जिनकी कविता – ‘झाँसी की रानी’ पढ़ कर बहुत अच्छी लगी जो मुझे खुद के ब्लॉग से शेयर कर रहा हूँ |
Image Credit : Google
बिजली जैसी चमक रही थी,हांथों में जिसकी तलवार,
झांसी की रानी थी सुनलो लक्ष्मीबाई की ललकार।
वीरों की धरती भारत में,वीर-धीर थी एक रानी,
मणिकर्णिका,लक्ष्मीबाई,नाम छबीली एक रानी,
भागीरथी माँ,पिता मोरोपंत की संतान अकेली थी,
शास्त्र,शस्त्र की शिक्षा,बचपन में ही उसने ले ली थी,
कानपूर की नानासाहेब की,मुँहबोली थी बहना,
बरछी,तलवारों के संग में बचपन से ही था रहना,
चूड़ी के बदले हाथों में जिसकी सजती थी तलवार,
झांसी की रानी थी सुनलो लक्ष्मीबाई की ललकार।1
बड़ी हुयी फिर हुयी सगाई,झांसी के महाराजा से,
मधुर मिलन लक्ष्मीबाई का गंगाधर महाराजा से,
मगर भाग्य में पुत्र नहीं,एक पुत्र हुआ वो रहा नहीं,
गोद लिया एक पुत्र मगर,दुर्भाग्य अभी भी टला नहीं,
ग्यारह साल हुए शादी का,पति का साया छूट गया,
झांसी के किले पर मानो,एक बिजली सा टूट पड़ा,
डलहौजी अंग्रेज ने दत्तक पुत्र को राजा ना माना,
हड़पनीति के आगे रानी का भी एक नहीं माना,
View original post 1,048 और शब्द
मै तुम्हारा दोस्त हूँ।
हम-तुम ‘लेखक – रमानाथ अवस्थी’
हम-तुम |
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रात की बात, ‘लेखक – रमानाथ अवस्थी’
रात की बात |
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ख्याब – आखिरी पन्ना
आँखों में अब ख्वाब कहाँ
जब रातों में नींद नहीं
सपने भी अब देखे कैसे
जब अपना कोई चाँद नहीं ।
खूब अँधेरी रातें हैं पर
चाँद की चाँदनी है नहीं
तारे गिन कर रात कटी
चाँद का दिलदार हुआ नहीं ।।
कब कहाँ किसके ख्याब हुए पूरे
कुछ तुम्हारे तो कुछ हमारे रहे अधूरे
मिलती कहाँ मंजिल सब को यहाँ
किसी के रास्ते रहे अधूरे
तो कुछ रास्तों के बिना रहे अधूरे ।।